लोकलसर्कल्स के एक सर्वेक्षण के अनुसार, सर्वेक्षण में शामिल अधिकांश शहरी भारतीय माता-पिता ने कहा है कि उनके बच्चे सोशल मीडिया, ओटीटी और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफार्मों के आदी हैं, जबकि हर तीन में से एक उत्तरदाताओं ने स्वीकार किया कि ऑनलाइन एडिक्शन और गेमिंग की लत बच्चों को आक्रामक या फिर बेहद सुस्त और कुछ मामलों में अवसाद का मरीज बना रही है.
पैरेंट्स की मांग
सर्वेक्षण में शामिल 73 प्रतिशत शहरी भारतीय माता-पिता चाहते हैं कि डेटा संरक्षण कानून यह सुनिश्चित करे कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए अनिवार्य माता-पिता की सहमति मांगी जाए, जब वे सोशल मीडिया, ओटीटी/वीडियो और ऑनलाइन गेमिंग प्लेटफॉर्म से जुड़ें. इस सर्वे में 296 जिलों के करीब 46000 से ज्यादा शहरी पैरेंट्स ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. इसके लगभग 62% उत्तरदाता पुरुष थे जबकि 38% उत्तरदाता महिलाएं थीं.
रोजाना 3-5 घंटे गैजेट के साथ बिता रहे बच्चे
सर्वे में शामिल 9-17 आयु वर्ग के बच्चों के 61% शहरी भारतीय पैरेंट्स ने साझा किया कि उनके बच्चे हर दिन औसतन 3 घंटे या उससे अधिक समय सोशल मीडिया या वीडियो/ओटीटी और ऑनलाइन गेम पर बिताते हैं. चूंकि सभी बच्चे इंटरनेट पर समान समय नहीं बिताते हैं, इसलिए सर्वेक्षण के पहले प्रश्न में नागरिकों से यह जानना चाहा गया कि ‘आपके परिवार में 9-17 वर्ष की आयु के बच्चे प्रति दिन औसतन कितना समय सोशल मीडिया, वीडियो/ओटीटी और ऑनलाइन गेम खेलने पर बिताते हैं?’ इस सवाल के जवाब पर 11507 जवाब मिले.
स्टडी के मुताबिक 39% पैरेंट्स ने बताया कि उनके बच्चे हर दिन अपने गैजेट पर 1-3 घंटे बिताते हैं, वहीं 46% ने कहा कि यह समय सीमा प्रतिदिन 3-6 घंटे है. इसी तरह 15% ने साझा किया कि उनके बच्चे सोशल मीडिया, वीडियो/ओटीटी और ऑनलाइन गेम पर रोजाना 6 घंटे से अधिक समय बिताते हैं.
सरकार से साझा होंगे आंकड़े
लोकलसर्किल्स इस सर्वेक्षण के नतीजों को इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के साथ-साथ सभी प्रमुख हितधारकों के साथ साझा करेगा, ताकि पैरेंट्स की परेशानी और इस गंभीर समस्या को समझते हुए भारत में बच्चों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित इंटरनेट पहुंच सुनिश्चित करने की दिशा में आगे बढ़ा जा सके.