सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि न्यायिक निकाय होने के नाते राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) यदि अपने द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति की रिपोर्टों पर भरोसा करता है तो उसे प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत के अनुपालन में पक्षकारों को चर्चा और खंडन का अवसर देना चाहिए। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा है, किसी न्यायिक कार्य की प्रकृति में यह आवश्यकता होती है कि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन किया जाए।
अदालत ने कहा कि एनजीटी हालांकि संसद के एक अधिनियम द्वारा गठित एक विशेष न्यायिक निकाय है, फिर भी इसके कार्य का निर्वहन कानून के अनुसार होना चाहिए, जिसमें एनजीटी अधिनियम की धारा 19 (1) में परिकल्पित प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन भी शामिल है। एनजीटी अधिनियम में यह भी कहा गया है कि एनजीटी द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट के आधार पर जो तथ्यात्मक जानकारी एनजीटी के संज्ञान में आती है, उसे पक्षकारों को उनकी प्रतिक्रिया के लिए प्रकट किया जाना चाहिए, अगर एनजीटी को उस पर भरोसा करना है।
अदालत का फैसला एनजीटी (प्रधान पीठ, नई दिल्ली) की ओर से पारित उस आदेश के खिलाफ अपीलों पर आया है जिसमें सिंगरौली सुपर थर्मल पावर प्लांट्स को वायु प्रदूषण नियंत्रण, निगरानी उपकरण स्थापित करने और उपचारात्मक उपायों के रूप में फ्लाई ऐश के समय पर उपयोग और निपटान का निर्देश दिया गया था। अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में एनजीटी ने अपीलकर्ताओं को कोई अवसर दिए बिना समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। लिहाजा पीठ ने मामले को पुनर्विचार के लिए एनजीटी को वापस भेज दिया और सभी पक्षों को उचित अवसर देने के बाद मामले पर फैसला करने के लिए कहा है।