देश में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने की चल रही चर्चाओं ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की धड़कनें बढ़ा रखी हैं. बोर्ड ने एक बार फिर UCC की खिलाफत का राग अलापा है. बोर्ड ने लॉ कमीनशन से कहा है कि शरिया के मूल प्रारूप में एक भी बदलाव उसे मंजूर नहीं होगा. बोर्ड ने कहा कि भारतीय संविधान में धर्म की स्वतंत्रता का उल्लेख है और यह मौलिक अधिकार है.
‘आदिवासी ईसाइयों को छूट तो मुस्लिमों को क्यों नहीं’
AIMPLB के अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी के नेतृत्व में बुधवार को बोर्ड के एक प्रतिनिधिमंडल ने समान नागरिक संहिता (AIMPLB Stand on UCC) पर अपना रुख बताने के लिए लॉ कमीशन के अध्यक्ष न्यायमूर्ति रितु राज अवस्थी से मुलाकात की थी. मुस्लिम पर्सनल लॉ की रक्षा करने का दावा करने वाली संस्था ने सवाल उठाया कि जब सरकार पूर्वोत्तर राज्यों के आदिवासियों और ईसाइयों को इसके आवेदन से बाहर करने के लिए तैयार है तो केवल मुसलमानों को यूसीसी से छूट क्यों नहीं दी जा रही है.
‘कुरान- सुन्ना नें नहीं हो सकता कोई बदलाव’
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB Stand on UCC) ने कहा कि कुरान और सुन्ना (पैगंबर के शब्द और कार्य) पर आधारित शरिया कानून (मुस्लिम पर्सनल लॉ) में बदलाव नहीं किया जा सकता, जबकि इज्तेहाद यानी इस्लामी विद्वानों की राय समय और परिस्थितियों के साथ भिन्न हो सकती है. AIMPLB ने कहा कि अगर किसी को धार्मिक व्यक्तिगत कानून से कोई समस्या है तो वे विशेष विवाह पंजीकरण अधिनियम के तहत शादी कर सकते हैं, जो एक धर्मनिरपेक्ष कानून है.
‘मुस्लिम कानून में शादी के लिए उम्र फिक्स नहीं’
बोर्ड (AIMPLB Stand on UCC) ने कहा कि इस समय मुस्लिम कानून के तहत विवाह के लिए ऐसी कोई खास आयु निर्धारित नहीं है. अगर पति और पत्नी, दोनों विवाह के दायित्वों को पूरा करने की स्थिति में हैं, तो वे विवाह कर सकते हैं. यह मुद्दा कि क्या ऐसे विवाह बाल विवाह निरोधक अधिनियम और यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों का संरक्षण अधिनियम के प्रावधानों से प्रभावित होंगे, सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष विचाराधीन है.
‘लॉ कमीशन ने दिया उचित कार्रवाई का आश्वासन’
मुलाकात के बाद AIMPLB ने एक बयान जारी करके कहा, लॉ कमीशन (AIMPLB Stand on UCC) के अध्यक्ष ने आश्वासन दिया है कि वह कोई बड़े बदलाव का सुझाव नहीं देने जा रहे. उन्होंने कहा कि लॉ कमीशन की भूमिका केवल सुझाव देने तक ही सीमित है और सरकार इस पर विचार कर आखिरी फैसला लेगी. बताते चलें कि 22वें लॉ कमीशन ने इस साल 14 जून को यूसीसी की जांच के लिए जनता और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से राय मांगी थी.