कत्यूरी राजवंश महसों का दरबार का चित्र
इतिहासकारों के अनुसार कत्यूरों की राजधानी मूलतः जोशीमठ में हुआ करती थी, जिसे ब्रह्मपुर नाम से पहचाना जाता था. राजा असन्तिदेव के समय में इसे कत्यूर (बैजनाथ) में स्थानांतरित कर दिया गया.
अटकिंसन ने अस्कोट, डोटी, पालीपछाऊँ से प्राप्त गुरु पादुका नामक पुस्तक के आधार पर एक चौथी वंशावली का भी वर्णन किया है. इसे अन्य तीनों की अपेक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इसमें वंशावली के अलावा कई राज कर्मचारियों के अलावा महत्वपूर्ण राजनीतिक व धार्मिक घटनाओं का वर्णन भी मिलता है. इसके अनुसार जोशीमठ से शासन करने वाले कत्यूरी शासक थे— 1. अग्निराय, 2. फेलाराय, 3. सुबतीराय, 4. केशवराय, 5. बगड़राय, 6. आसन्तीराय, 7. वासन्तीराय, 8. गोरारे, 9. श्यामलराय, 10. इलणा देव, 11. प्रितमदेव, 12. धामदेव.
प्रख्यात इतिहासकार मदनचन्द्र भट्ट के अनुसार के अनुसार कट कत्यूरी युग 1200 से 1545 ई. तक माना जा सकता है. इस समय कत्यूरी शासन की राजधानी रणचूलाकोट में थी. इसी के पश्चिम में 2 राजधानियां वैराट (चौखुटिया और लखनपुर) थी तथा पूर्व में हाटथर्प (डीडीहाट) और ऊकू (नेपाल) थीं.
बाद में एक और मजबूत शाखा महुली महसों राज, ( बस्ती ), उत्तर प्रदेश थी। सामंती साम्राज्य (47 किलोमीटर) 14 कोस तक फैला हुआ था। ब्रह्म देव के शासनकाल के बाद साम्राज्य विघटित हो गया, उनके पोते अभय पाल देव ने कुमाऊं के पिथौरागढ जिले में असकोटे राज्य से अपना शासन जारी रखा। अभय पाल, देव के दो छोटे बेटे, अलख देव और तिलक देव 1305 में एक बड़ी सेना के साथ अस्कोट से निकले और तराई क्षेत्र और यूपी के मैदानी इलाकों से गुजरते हुए गोंडा/गोरखपुर आये। यह क्षेत्र घने जंगलों और दलदलों से घिरा हुआ था और यहां भयंकर भर आदिवासियों का निवास था। दक्षिण में घाघरा नदी और पूर्व में राप्ती नदी इस क्षेत्र को भारी हमलों से बचाती थी।
कत्यूरी राजवंश की उत्तर प्रदेश शाखा
महुली के नवें राजा महाराज दीप पाल्य देव की दो शादी हुयी थी छोटी रानी से मर्दन पाल हुए और बड़ी रानी से करण पाल हुये मर्दन पाल छोटी रानी से पैदा होने के बाद भी बड़े पुत्र हुये करण पाल बड़ी रानी से पैदा होने के उपरांत छोटे हुयी आपस में उत्तराधिकार में महुली राज्य का बटवारा 1607 ईस्वी में हुआ जिसमे मर्दन पाल को राजा की उपाधि और तथा करण पाल मर्दन पाल के बराबर 75 गांव का राज़्य हरिहरपुर स्वतन्त्र रूप स से प्राप्त हुआ तथा कुँवर एवं बाबु की उपाधि मिली आगे हरिहरपुर में करण पाल के वंसजो में बटवारा होने के कारन 12 कोट में बट गया जिसमे बेलदुहा बेलवन , सींकरी ,मैनसिर , भक्ता , कोहना, हरिहरपुर ग्राम या नगरों में पाल राजवंश के परिवार 12 कोट में रहने लगे इसमें एक शाखा राय कन्हैया बक्स बहादुर पाल की थी इनके तीन पुत्र हुए जगत बहादुर पाल शक्त बहादुर लोक , नरेंद्र बहादुर पाल शक्त बहादुर पाल 1857 की क्रान्ति में बागी हो के शाहीद हो गए थे जगत बहादुर पाल वशजों में दान बहादुर पाल महादेव पाल हरिहर प्रसाद पाल भागवत पाल बांके पाल दान बहादुर पाल की शादी प्रताप गड एक राज़ परिवार में हुयी थी दान बहादुर पाल भागवत पाल और बांके पाल को कोई पुत्र नहीं हुए महादेव पाल को एक पुत्र राजबहादुर पाल हुए तथा हरिहर प्रसाद पाल को तीन पुत्र ज्ञान बहादुर पाल शीतला बक्स पाल चन्द्रिका प्रसाद पाल शीतला बक्स पाल को कोई संतान नहीं थी ज्ञान बहादुर पाल से गजपति प्रसाद पाल के पुत्र गगनेंद्र पाल ,गर्वमर्दन पाल योगेंद्र पाल धीरेंद्र पाल तथा चन्द्रिका प्रसाद पाल से राजेन्द्र बहादुर पाल एवं वीरेंद्र बहादुर पाल हुए राजेंद्र बहादुर पाल ke putra रवि उदय पाल.अखिलेश बहादुर पाल। अखंड बहादुर पाल वीरेंद्र बहादुर पाल के पुत्र रविंद्र बहादुर पाल अरविन्द बहादुर पाल राज बहादुर पाल से पटेश्वरी प्रसाद पाल के पुत्र दिनेश पाल उमेश पाल मोहन पाल हुए नरेन्द्र बहादुर पाल को दो पुत्र हुए संत बक्स पाल गुरु बक्स पाल सन्त बक्स पाल को दो पुत्र हुए प्रयाग पाल काशी पाल काशी पाल के एक पुत्र हुए महेंद्र पाल के पुत्र दुर्गेश पाल गुरुबक्स पाल के पुत्र जायबक्स पाल तथा इनके पुत्र हुए चन्द्रिका बक्स पाल इनके पुत्र चन्द्रदेव पाल के पुत्र अजय पाल विजय पाल तथा इंद्रदेव पाल और दूसरी शाखा मैनसिर और सीकरी की है जिसमे रामशंकर पाल पन्ना पाल तीसरी शाखा में भक्ता कोहना हरिहरपुर नगर भद्रसेन पाल इन्द्रसेन पाल रंग नारायण पाल ब्रज भाषा के लोक प्रिय कवि , सत्यासरन पाल बृजेश पाल अदित पाल गिरजेश पाल बिमल पाल विजय पाल विनय पाल राजु पाल रहे है या हैं