सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वो सिर्फ इस बात का परीक्षण करेगा कि सरकार ने आर्टिकल 370 को हटाने के लिए उचित संवैधानिक प्रकिया का पालन किया था या नहीं. सुनवाई के दौरान कोर्ट इस पर विचार नहीं करेगा कि ये फैसला लिया जाना ठीक था या नहीं. संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यन्त दवे से कहा कि हम आर्टिकल 370 को हटाने के पीछे सरकार की मंशा या विवेक की समीक्षा नहीं करेंगे. हम सुनवाई सिर्फ सवैंधानिक पहलुओं तक सीमि रखेगे. अगर इस फैसले में संवैधानिक प्रकिया का उल्लंघन हुआ है तो हम ज़रूर दखल देंगे.
सिर्फ J&K की संविधान सभा ही ले सकती है फैसला- दवे
सुनवाई के दौरान याचिककर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि आर्टिकल 370 को बरकरार रखने या हटाने पर कोई भी फैसला जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की संविधान सभा ही ले सकती है. संविधान सभा ने आर्टिकल 370 को बरकरार रखने का फैसला लिया था. संविधान सभा 1957 में खत्म हो चुकी है अब इसमें बदलाव नहीं किया जा सकता.
1957 के बाद भी जम्मू कश्मीर को लेकर संविधान में बदलाव हुए: SC
चीफ जस्टिस (Supreme Court) ने दवे की बात पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर अनुच्छेद 370 को हटाने या इसमें बदलाव करने का अधिकार साल 1957 में जम्मू कश्मीर की संविधान सभा के खत्म होने के साथ ही खत्म हो गया तो फिर जम्मू कश्मीर को लेकर संवैधानिक आदेश कैसे जारी हुए. इन आदेशों के जरिए जम्मू कश्मीर के संदर्भ में संविधान में ज़रूरी बदलाव किए गए.
अर्टिकल 370-BJP का चुनावी एजेंडा- दवे
दुष्यन्त दवे ने कहा कि आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला इसलिए नही लिया गया क्योंकि राज्य के प्रशासन के काम में कोई दिक्कत आ रही थी. केन्द्र सरकार ने इसको हटाने के पीछे कोई ठोस कारण नहीं दिए. सरकार ने सिर्फ कुछ हिंसा की घटनाओं और राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए ये फैसला ले लिया. दरअसल बीजेपी ने चुनावी घोषणापत्र में वायदा किया था कि अगर उसे लोग वोट देंगे तो वो आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला लेगी. इसलिए सरकार ने चुनावी वायदे को पूरा करने के लिए फ्रॉड किया, जबकि सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) अपने फैसलों में साफ कर चुका है कि चुनावी घोषणपत्र संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ नहीं हो सकते.
SC के पुराने फैसलों का दिया हवाला
दवे ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के कुछ पुराने फैसलों का हवाला दिया, जिनके मुताबिक आर्टिकल 370 को हटाने का फैसला सिर्फ जम्मू कश्मीर (Jammu Kashmir) की संविधान सभा के जरिए ही हो सकता है. दवे ने कहा किसंविधान सभा की बहस से साफ होता है कि आर्टिकल 370 को लाने के पीछे मकसद क्या था. जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए अर्टिकल 370 संविधान का अभिन्न हिस्सा है. आज की सरकार के पास इस हटाने का कोई नैतिक या संवैधानिक अधिकार नहीं था. राष्ट्रपति ने आर्टिकल 370 को लेकर वो फैसला लिया, जिसको लेने का उनको अधिकार ही नहीं था. ये सरकार द्वारा अपनी शक्तियों का मनमाना दुरुपयोग है.