भारत में वैवाहिक संस्था को सुनियोजित तरीके से नष्ट करने की कोशिश हो रही है. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव इन मामले में सुनवाई कर रही याचिका पर तल्ख टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि जिस तरह से विवाह के जरिए सुरक्षा और स्थायित्व का भरोसा मिलता है उसे लिव इन के जरिए नहीं हासिल किया जा सकता. हमें यह सोचना होगा कि इस व्यवस्था से किस तरह का नुकसान हो रहा है. क्या इसकी वजह से आपसी रिश्ते नहीं प्रभावित हो रहे हैं.
लिव इन पर अदालत की तल्ख टिप्पणी
जस्टिस सिद्धार्थ की अदालत ने कहा कि घड़ी घड़ी बॉयफ्रेंड बदलने की चाहत को किसी स्थाई और स्वस्थ समाज के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता. यह मामला सहारनपुर के एक केस से जुड़ा है,लिव इन में रहने वाली लड़की ने अपने बॉयफ्रेंड पर रेप का आरोप लगाया था. हुआ कुछ यूं कि एक लड़का 19 साल की लड़की के साथ लिव इन में रहता था आपसी रजामंदी से रिश्ता कायम हुआ और लड़की प्रेग्नेंट हो गई. प्रेग्नेंट होने के बाद लड़की ने रेप का केस देवबंद पुलिस स्टेशन में दर्ज कराया. अर्जी में लड़की ने कहा कि आरोपी ने उसे शादी का झांसा देकर रेप किया और बाद में पलट गया. आरोपी की गिरफ्तारी 18 अप्रैल को हुई थी.
लिव इन रिलेशन इस सूरत में ही सामान्य
अदालत ने कहा कि लिव इन रिश्ते को सामान्य आप मान सकते हैं जब इस देश में वैवाहिक संबंध पूरी तरह अप्रासंगिक हो जाएं जैसा कि कुछ विकसित देशों में होता है लेकिन वहां भी अगर आप देखें तो यह समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है. अगर उस तरह की समस्या यहां भी बनी रही तो भविष्य में हम सबको मुश्किल हालात का सामना करना पड़ेगा. जस्टिस सिद्धार्थ ने कहा कि गैरवफादारी को शादी और लिव इन में प्रगतिशील समाज की तरह देखा जा रहा है. युवा इस तरह के विचारों से बिना उसके नुकसान को समझे आकर्षित हो रहे हैं.