जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में मुठभेड़ में वीरगति को प्राप्त हुए मेजर आशीष का अंतिम संस्कार उनके गांव बिंझौल में किया। मेजर के पार्थिव शरीर को पहले पानीपत के आवास पर लाया गया है। जहां अंतिम दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ा रहा है। जिसके बाद सैन्य अधिकारी और परिवार वाले मेजर के पार्थिव शरीर को लेकर गांव बिंझौल पहुंचे। जहां राजकीय सम्मान के साथ मेजर का अंतिम संस्कार किया गया। मेजर की अंतिम यात्रा को पानीपत शहर के बीच बाजार से निकाला गया ताकि शहरवासी मेजर आशीष अंतिम दर्शन कर सके। गांव के युवा मोटरसाइकिलों के जत्थे के साथ पार्थिव शरीर के आगे जुलूस के रूप में चले। इसके अलावा मुख्य गलियों में तिरंगा लगाए गए।
गांव के श्मशान घाट में लगी भीड़
मेजर आशीष की अतिंम विदाई में शामिल होने के लिए उनके गांव बिंझौल के श्मशान घाट लोगों की इतनी भीड़ लग गई कि कोई पेड़ पर चढ़ गया तो कोई श्मशान घाट में बने कमरे की छत पर। इस दौरान लोगों के हाथों में तिरंगे दिखाई वहीं लोगों ने जोर-जोर से भारत माता जय के नारे लगाए। इस दौरान लोगों को देश का जवान खोने का गम था वहीं उन्हें अपने लाल पर गर्व भी था कि वह देश के लिए शहीद हुआ है।
अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुटे सैन्य अधिकारी
अलग-अलग स्थानों पर फूलों की वर्षा की गई। परिजनों के चेहरे पर जहां बेटे को खोने का गम है, देश के लिए शहीद होने पर गर्व का एहसास भी नजर आया। इससे पहले शहीद मेजर आशीष धौंचक के सेक्टर-7 स्थित किराए के मकान में गुरुवार की सुबह से ही शोक व्यक्त करने वालों का तांता लगा रहा। इस दौरान पूरा मकान महिलाओं और पुरुषों से भर गया। वहीं, पिता लालचंद, मां कमला, पत्नी ज्योति और तीनों बहनों अंजू, सुमन और ममता का रो-रोकर बुरा हाल रहा।
मेजर आशीष की शहादत की जानकारी लगने पर कोई भी अपने आंसू रोक नहीं पाया। पानीपत शहर विधायक प्रमोद विज, मेयर अवनीत कौर, एसडीएम मनदीप सिंह, तहसीलदार वीरेंद्र गिल ने पहुंचकर परिवार को ढांढस बधाया। पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यू के छोटे भाई मेजर सतपाल सिंह संधू और उनके चचेरे भाई प्रवीण संधू परिवार सहित पहुंचे। बताया जा रहा है कि आशीष की पत्नी ज्योति पूर्व वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु की नजदीकी रिश्तेदारी से है।
परिवार के लोग वीरवार की शाम तक पार्थिव शरीर पानीपत पहुंचने की आस लगाए हुए थे, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। मेजर सतपाल सिंह संधू ने सेना के अधिकारियों से भी इस विषय में बात की। उन्होंने उनके पिता लालचंद और चचेरे भाई मेजर विकास से बातचीत की और उनको ढांढस बंधाया। उन्होंने इसके बाद परिवार के बाकी सदस्यों से बातचीत की। पिता लालचंद पूरे दिन लोगों से घिरे बैठे रहे। दोपहर बाद बाहर निकले तो हर नजर उनकी तरफ थी।
वे बोले कि सब कुछ होकर भी कुछ नहीं दिखाई देता। उन्होंने कहा कि चार दिन पहले ही बेटे आशीष से बात हुई थी। उसने अधिकतर समय मकान के काम के बारे में में ही बातचीत की। वैसे तो अक्सर बात होती थी, लेकिन उस दिन उनकी बातों को सुनने का भी मन कर रहा था। मुझे नहीं पता था कि अनहोनी यह दिन दिखा देगी।