अगर इंडिया गेट से गाड़ी लेकर निकलेंगे तो कुछ ही मिनटों में 3 किलोमीटर का सफर पूरा कर आप उस इमारत के सामने होंगे, जो अब इतिहास बनने जा रही है. 144 खंभों पर खड़ी ये गोलाकार संरचना सिर्फ एक इमारत नहीं है बल्कि वो बुनियाद है, जिस पर दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र खड़ा है. 96 साल पुरानी इस जगह से कतार में खड़े आखिरी शख्स के हित के लिए कानून बनाए जाते हैं. जहां प्रधानमंत्री बनकर पहली बार नरेंद्र मोदी पहुंचते हैं तो द्वार पर सिर झुकाकर माथा टेकते हैं. हम बात कर रहे हैं देश के पुराने संसद भवन की जो अब इतिहास के पन्नों में दर्ज होने जा रहा है.
नई सदी का भारत दुनिया में अपना लोहा मनवाने के लिए पूरी ताकत से आगे बढ़ रहा है. हाईटेक सुविधाओं वाली संसद की नई इमारत तैयार हो चुकी है. लेकिन पुरानी संसद उस दौर की गवाह है, जब अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी की बेड़ियां तोड़कर भारत ने आजादी पाई थी.
भगत सिंह ने फेंका था बम
ये वही संसद भवन है, जिसका निर्माण भले अंग्रेजों ने किया लेकिन उस बहरी सरकार को अपनी बात सुनाने के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने बम फेंका था. 14 अगस्त की रात को इसी संसद की इमारत में पंडित नेहरू का ‘ट्रिस्ट विद डेस्टनी’ वाला ऐतिहासिक भाषण गूंजा. लाल बहादुर शास्त्री ने इसी संसद में लोगों से एक वक्त का खाना छोड़ देने की अपील की थी.
पाकिस्तानी सेना की करारी हार की खबर इसी लोकतंत्र के मंदिर में इंदिरा गांधी ने पूरे देश को सुनाई थी. जहां अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी बिगड़ेंगी. लेकिन ये देश रहना चाहिए. वो दौर भी आया जब इसी संसद के ऊपर जैश के आतंकियों ने हमला बोल दिया, जिसमें 14 लोग मारे गए थे. धारा 370 से हटाने से लेकर, जीएसटी और ऐसे ही न जाने कितने ही कानूनों को यहां घंटों की बहस और चर्चा के बाद अमलीजामा पहनाया गया.
पुरानी संसद की कहानी
दौर था साल 1911 का. भारत पर अंग्रेजी हुकूमत थी. तब ब्रिटेन के राजा जॉर्ज पंचम ने राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट करने का ऐलान किया.
तब दिल्ली को डिजाइन करने की जिम्मेदारी आई एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर के कंधों पर. दोनों उस वक्त ब्रिटेन के नामी आर्किटेक्ट थे. तब काउंसिल हाउस की कल्पना की गई थी, जो बाद में भारत की संसद में तब्दील हो गया.
बेकर इस बिल्डिंग के डिजाइन को तिकोना आकार में चाहते थे. उनका कहना था कि इसको रायसीना हिल्स से दूर बनाया जाए. जबकि लुटियंस का कहना था कि इसे गोलाकार में मौजूदा लोकेशन पर बनाया जाए. अंत में लुटियंस की ही चली.
इस इमारत को बनाते वक्त 27 फीट लंबे 144 सैंडस्टोन के खंभे बनाए गए. मार्बल और पत्थरों को आकार देने के लिए 2500 राजमिस्त्री बुलवाए गए. जब 6 साल बाद 83 लाख रुपये की लागत से साल 1927 में यह इमारत बनकर तैयार हुई तो देखने वालों की आंखें फटी रह गईं.
18 जनवरी 1927 को तत्कालीन वॉयसरॉय लॉर्ड इरविन शाही सवारी से ग्रेट प्लेस (विजय चौक) पहुंचे. इसके बाद हर्बर्ट बेकर ने उनको चाबी दी और फिर इरविन ने काउंसिल हाउस का गेट खोलकर इसका उद्घाटन किया.
उद्घाटन को दो ही साल बीते थे कि यहां ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हो रहा था, तभी 12.30 बजे जोरदार धमाका हुआ और पूरा सदन धुएं से भर गया. ये धमाका करने वाले थे भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त.
14 अगस्त 1947 को इसी संसद भवन में संविधान सभा का विशेष सत्र बुलवाया गया था, जिसकी अगुआई की थी पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने.
जब बापू की हत्या हुई तब इसी संसद में जवाहरलाल नेहरू ने कहा था- ‘एक गौरव चला गया. एक सूरज जिसने हमें रोशनी और गर्माहट दी अब डूब गया है और हम अंधकार और ठंड में कांप रहे हैं.’
1975 में जब इमरजेंसी लगाई गई तो लोकसभा का विशेष सत्र बुलाया गया था. तब डिप्टी होम मिनिस्टर एफएम मोहसिन ने राष्ट्रपति की तरफ से लगाई इमरजेंसी का ऐलान किया था.
इसी संसद में 31 मई 1996 को पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक भाषण देने के बाद संख्याबल कम होने के कारण राष्ट्रपति को इस्तीफा सौंप दिया था.
बाद में जब दोबारा उनकी सरकार बनी तो उन्होंने देश को इसी संसद से परमाणु टेस्ट की जानकारी थी. इसी संसद से देश को उत्तराखंड, सिक्किम, नगालैंड, मणिपुर, मिजोरम, झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्य बने.
भले ही पुरानी संसद इतिहास के पन्नों में दर्ज होने जा रही हो लेकिन आने वाली पीढ़ियों को यह हमेशा बताइगी कि हमने कहां से सफर शुरू किया और आज हम कहां हैं.