ग़ाज़ीपुर ।
फीकी पड़ती जा रही है दीये की चमक।
चाइनीज़ झालर के सामने दीयों की बुझता प्रकाश।
महंगी मिट्टी और काम के हिसाब से दाम के न मिलने से हताश हैं कुम्हार।
हाथ वाले चाक की जगह अब इलेक्ट्रिक चाक का बिल भी नहीं भर पाते कुम्हार।
ग़ाज़ीपुर । दीपावली और छठ नजदीक है। ऐसे में अन्य दिनों में खाली बैठे कुम्हारों के चाक तेजी से चल रहे हैं। उनके साथ परिवार के लोग भी जुटे हैं। दिन रात मेहनत कर मिट्टी के दीये, खिलौने के साथ बर्तन तैयार किए जा रहे हैं। इन लोगो को यह उम्मीद है कि शायद इस दीपावली और छठ पर पहले से थोड़ा अधिक लाभ हो जाएगा तो उनके घर में भी रोशनी हो सकेगी और उनके घर में भी त्योहार खुशी से मन सकेगा, लेकिन मन का उत्साह डर के शब्दों में बाहर आ रहा है, कुम्हार कहते हैं कि मिट्टी मिल नहीं रही है, चोरी से ला रहे हैं, क्या करें कैसे करें कुछ समझ् में नहीं आ रहा है। पहले कुम्हार का चाक हाथ से चलता था लेकिन अब इलेक्ट्रिक मोटर वाले चाक लग गए हैं और डिमांड व सप्लाई के अंतर में बिजली का दाम भी निकलना मुश्किल हो जा रहा है क्योंकि चाइना के झालरों ने दीयों की चमक फीकी कर रखी है। वैसे भी परम्पराओं के अनुसार दीप पर्व पर घर-आंगन से लेकर मंदिरों व चौबारों तक मिट्टी के दीपक जलाए जाएंगे। इससे इन गरीबों के घर में खुशियां जरूर आएंगी ऐसी इन्हें उम्मीद है।
जैसा कि हम देख रहे हैं कि हाईटेक युग में मिट्टी के बर्तनों का चलन बहुत हद तक खत्म हो चुका है। पहले दीपावली पर मिट्टी के दीये ही उपयोग में लाए जाते थे। धार्मिक व अन्य कार्यक्रमों में भी मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग प्रमुखता से किया जाता था, लेकिन आजकल इनका प्रचलन बहुत कम हो गया है। इससे ज्यादातर कुम्हार परिवारों का ये रोजगार समाप्त हो गया है। कुम्हारी कला के माहिर कुम्हारों की मिट्टी के बर्तन बनाने की कला धीरे-धीरे फीकी पड़ती जा रही है। बहुत कम लोग इस कला को जीवित रखे हैं। उन्ही में से गाज़ीपुर की कुम्हार बस्ती के कुछ परिवार हैं जो इस व्यवसाय को कई दुश्वारियों के बाद भी जिंदा रखे है और पूरा घर परिवार मिलकर मिट्टी के दीयों, परती, खिलौने, चाय के भरुके व बर्तन आदि के निर्माण दीवाली में इस आस से कर रहे हैं कि शायद इस बार की दीवाली पहले से बेहतर हो जाए ।।