मणिपुर में हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है। दो स्थानों पर रुक-रुक कर गोलीबारी होने की घटना सामने आई है। हालांकि, अभी तक किसी के हताहत होने की कोई सूचना नहीं है।
सुरक्षा सूत्रों ने बताया कि पहली घटना मंगलवार शाम की है। जब सात-आठ बजे के करीब खोइजुमतंबी इलाके में दो समुदायों के बीच रुक-रुक कर गोलीबारी हुई। वहीं, दूसरी घटना बुधवार सुबह साढ़े चार बजे के आसपास फेलेंग के पूर्व में रिज लाइन पर हुई। बता दें, दोनों ही घटना में कोई जनहानि नहीं हुई है।
यह है मामला
गौरतलब है, मणिपुर में 3 मई को भड़की जातीय हिंसा में अब तक करीब 120 लोगों की जान जा चुकी है और 3,000 से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। दरअसल, मणिपुर का मेइती समुदाय उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग कर रहा है। इसके खिलाफ तीन मई को राज्य के पर्वतीय जिलों में आदिवासी एकजुटता मार्च निकाला गया, जिसके बाद राज्य में हिंसा शुरू हो गई।
ऐसे शुरू हुई हिंसा
तनाव की शुरुआत चुराचंदपुर जिले से हुई। ये राजधानी इम्फाल के दक्षिण में करीब 63 किलोमीटर की दूरी पर है। इस जिले में कुकी आदिवासी ज्यादा हैं। गवर्नमेंट लैंड सर्वे के विरोध में 28 अप्रैल को द इंडिजेनस ट्राइबल लीडर्स फोरम ने चुराचंदपुर में आठ घंटे बंद का ऐलान किया था। देखते ही देखते इस बंद ने हिंसक रूप ले लिया। उसी रात तुइबोंग एरिया में उपद्रवियों ने वन विभाग के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया। 27-28 अप्रैल की हिंसा में मुख्य तौर पर पुलिस और कुकी आदिवासी आमने-सामने थे।
इसके ठीक पांचवें दिन यानी तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर ने ‘आदिवासी एकता मार्च’ निकाला। ये मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा देने के विरोध में था। यहीं से स्थिति काफी बिगड़ गई। आदिवासियों के इस प्रदर्शन के विरोध में मैतेई समुदाय के लोग खड़े हो गए। लड़ाई के तीन पक्ष हो गए।
एक तरफ मैतेई समुदाय के लोग थे तो दूसरी ओर कुकी और नागा समुदाय के लोग। देखते ही देखते पूरा प्रदेश इस हिंसा की आग में जलने लगा। चार मई को चुराचंदपुर में मुख्यमंत्री बीरेन सिंह की एक रैली होने वाली थी। पूरी तैयारी हो गई थी, लेकिन रात में ही उपद्रवियों ने टेंट और कार्यक्रम स्थल पर आग लगा दी। सीएम का कार्यक्रम स्थगित हो गया।