भारत सरकार ने भारतीय नौसेना को नवीनतम पीढ़ी के लड़ाकू विमानों से लैस करने के लिए नौसेना राफेल के चयन की घोषणा की। भारतीय नौसेना के 26 राफेल अंततः पहले से ही सेवा में मौजूद 36 राफेल में शामिल हो जाएंगे। दसौ एविएशन ने यह जानकारी दी।
दसौ एविएशन ने बताया कि यह निर्णय भारत में आयोजित एक सफल परीक्षण अभियान के बाद लिया गया है। परीक्षण अभियान के दौरान नौसेना राफेल ने प्रदर्शित किया कि यह भारतीय नौसेना की परिचालन आवश्यकताओं को पूरी तरह से पूरा करता है और इसके विमान वाहक की विशिष्टताओं के लिए पूरी तरह उपयुक्त है।
इससे पहले 13 जुलाई को रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC) ने इस रक्षा सौदे को मंजूरी देने की घोषणा की थी। रक्षा अधिग्रहण परिषद ने भारतीय नौसेना के लिए तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों के साथ 22 राफेल एम और चार दो सीटों वाले ट्रेनर संस्करणों सहित 26 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने के प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह डीएसी के अध्यक्ष हैं। डीएसी रक्षा खरीद पर निर्णय लेने वाली रक्षा मंत्रालय की सर्वोच्च इकाई है।
भारत को क्यों पड़ी राफेल-एम खरीदने की जरूरत
इस सौदे के अनुसार, भारतीय नौसेना को चार प्रशिक्षक विमानों के साथ 22 सिंगल सीटेड राफेल समुद्री विमान (राफेल-एम) मिलेंगे। नौसेना इन लड़ाकू विमानों और पनडुब्बियों को तत्काल हासिल करने के लिए दबाव डाल रही थी, क्योंकि देश भर में सुरक्षा चुनौतियों के मद्देनजर इनकी कमी हो रही थी। भारतीय नौसेना स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य और विक्रांत पर तैनात करने के लिए पुराने मिग-29 के स्थान पर एक उपयुक्त लड़ाकू विमान की तलाश कर रही थी।
ये विमान थे राफेल की टक्कर में
नौसेना ने लंबी प्रक्रिया के बाद खरीद के लिए बोइंग एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट और फ्रांसीसी कंपनी दसौ एविएशन के राफेल एम विमान के बारे में विचार किया। बाद में राफेल एम इस दौड़ में विजेता रहा। विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रमादित्य और विक्रांत मिग-29 का संचालन कर रहे हैं और दोनों वाहकों पर ऑपरेशन के लिए राफेल की जरूरत है।
इस बीच, तीन स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों को नौसेना द्वारा प्रोजेक्ट-75 के हिस्से के रूप में रिपीट क्लॉज के तहत हासिल किया जाएगा, जिसके बाद उन्हें मुंबई में मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड में बनाया जाएगा।