हाल ही में दिल्ली में एनडीए के घटक दलों की बैठक हुई। इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चिराग पासवान की तस्वीर चर्चा में रही। चिराग ने 2020 का बिहार विधानसभा चुनाव बिना किसी गठबंधन के लड़ा। अब वे एनडीए में लौट आए हैं। सियासी गलियारों में इन सवालों की चर्चा में है कि क्या चिराग को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी? क्या दो धड़ों में बंट चुकी लोक जनशक्ति पार्टी एक होकर लोकसभा चुनाव लड़ेगी, क्या चाचा पशुपति पारस और भतीजे चिराग के बीच दूरियां मिटेंगी? अमर उजाला के साथ विशेष बातचीत में दिवंगत नेता रामविलास पासवान के बेटे और सांसद चिराग पासवान ने इन्हीं सवालों के जवाब दिए।
एक तस्वीर, जिसे राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों ने खूब देखा। एनडीए की बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने जिस तरह आपके गालों को पकड़ा और गले लगाया, उस दौरान क्या कहा?
चिराग पासवान: बात ज्यादा हुई नहीं। उन्होंने सिर्फ हालचाल पूछा। मुझे लगता है कि शायद उस दिन तस्वीरों और वीडियो के माध्यम से यह लम्हा सार्वजनिक हुआ, लेकिन इस लम्हे को मैंने महसूस कई बार किया। कई बार मेरे लिए हनुमान शब्द तंज के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था। कई बार मुझे ताने दिए जाते थे कि आप प्रधानमंत्री के खिलाफ क्यों कभी कुछ नहीं बोलते। भाजपा ने आपके साथ ऐसा किया, वैसा किया… दुनियाभर की बातें कही जाती थीं। कहा जाता था कि फिर भी आप प्रधानमंत्री के भक्त बने हुए हैं। हालांकि, मेरा मेरे प्रधानमंत्री के साथ यही रिश्ता रहा।
यह रिश्ता उनके साथ और ज्यादा तब गहराया, जब मेरे पिता अस्पताल में थे। उनकी तबीयत खराब थी। परिवार के एक सदस्य की तरह प्रधानमंत्री जी ने मुझे और मेरे परिवार को संभाला। उस दौरान दिन में दो-दो बार प्रधानमंत्री सीधे फोन करते थे। ना सिर्फ पिता का हाल-चाल जानते थे, बल्कि डॉक्टर्स से राय-मशविरा करके बताते थे कि अभी हम लोगों को क्या करना चाहिए। वो सम्मान उनके प्रति मेरे मन में हमेशा रहा। सिर्फ इसलिए कि मैं गठबंधन से अलग हो गया हूं तो मैं उनके खिलाफ बोलने लग जाऊं, ये मेरे संस्कारों में कभी नहीं रहा। उस वक्त कई तरह के आरोप भी मुझ पर लगे, लेकिन मैंने हमेशा उनके साथ मेरे रिश्ते की दुहाई दी। मैंने और प्रधानमंत्री जी ने भी हमेशा उस मर्यादा को बनाए रखा। उसी रिश्ते की एक बहुत खूबसूरत झलक उस दिन बैठक में देखने को मिली।
पार्टी में टूट से लेकर आपके पिता को मिले सरकारी बंगले के छिन जाने तक, कई लोगों ने इसमें केंद्र सरकार की भूमिका बताई। क्या आपने वो सब माफ कर दिया है?
चिराग: यह मेरी व्यक्तिगत लड़ाई थी ही नहीं। मेरी लड़ाई घर, गाड़ी, बंगले की नहीं हो सकती। मैं रामविलास पासवान जी का बेटा हूं। मेरी एक लंबी लड़ाई है। बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट को लेकर, युवा बिहारियों को उनका हक-अधिकार दिलाने को लेकर। मुझे अगर सिर्फ एक बंगले को लेकर लड़ाई लड़नी होती तो मैं 2020 में चुपचाप मुख्यमंत्री जी की गलत नीतियों के सामने नतमस्तक होता। उनसे समझौते कर लेता। बिहार में मेरे चार मंत्री होते। केंद्र सरकार में मैं खुद मंत्री होता। ये परिस्थितियां ही नहीं आतीं, पर मेरी वो लड़ाई नहीं है। एक बड़े लक्ष्य के साथ मैं निकला हूं तो इसलिए वो घर कभी लड़ाई में था ही नहीं। उस घर का मैं हकदार भी कभी नहीं था। वो जिस कैटेगरी का घर है, उसके लिए आपकी योग्यता काफी ज्यादा होनी चाहिए। मेरे पिता ने उतनी मेहनत की, तब वे उस घर के हकदार हुए। तो इस बात को कभी मान के भी नहीं चल रहा था कि सिर्फ दो बार का सांसद होने से मैं उस घर का हकदार हो सकता हूं।
क्या परिवार में भी टूट रही?
चिराग: परिवार पार्टी में टूट की जहां तक बात आई, मैंने कभी किसी दूसरे को जिम्मेदार माना ही नहीं। मेरा मानना है कि मेरे अपनों ने मुझे धोखा दिया। मेरे अपने अगर मेरे साथ खड़े रहते तो दुनिया की कोई ताकत नहीं थी, जो इस परिवार को तोड़ सकती या इस पार्टी को तोड़ सकती थी। धोखा मुझे मेरे अपनों से मिला। किसी दूसरे या तीसरे पर मैं क्या ही उंगली उठाऊं? इसलिए मेरे जेहन में कभी ये सब रहा ही नहीं कि भाजपा ने ये किया या प्रधानमंत्री जी खामोश रहे। जब मेरे अपने ही मेरे साथ नहीं थे तो कोई दूसरा भी उस वक्त मेरे साथ खड़े होकर क्या कर लेता? भाजपा या प्रधानमंत्री जी के खिलाफ कभी कोई ऐसी बातें उस दौरान निकली नहीं क्योंकि कभी मैंने उन लोगों को इसके लिए जिम्मेदार माना ही नहीं। दुनिया आपको उकसाने के लिए कई बातें करती है, लेकिन मुझे पता है कि हकीकत क्या थी।
फिर दूरी क्यों आई, आप ‘हनुमान’ भी कह रहे थे, लेकिन दूर क्यों थे?
चिराग: दूरी और करीबी, दोनों के लिए जिम्मेदार एक व्यक्ति हैं और वो हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी। दूरियां भी उनकी वजह से आईं। 2017 से दूरियों की शुरुआत हो गई थी। मैं या मेरे पिता रामविलास पासवान जी नीतीश कुमार के साथ काम करने को लेकर सहज नहीं थे। जब नीतीश भाजपा के साथ थे तो हमने कभी पहल भी नहीं की उनके साथ आने की। 2002 में जब हम एनडीए से यूपीए में गए, तब नीतीश कुमार बिहार में मुख्यमंत्री रहे। तब हम उनके साथ नहीं थे। नीतीश कुमार हमारी पार्टी के खिलाफ थे। 2005 में पार्टी के 29 विधायक तोड़े। दलित-महादलित कर मेरे पिता के राजनीतिक कद को घटाने की कोशिश की। कभी हमारे बीच सहजता नहीं थी।
2013 में जब नीतीश कुमार अलग हुए, तब हम एनडीए में आए। जब नीतीश दोबारा आए तो हम सहज नहीं थे, लेकिन अमित शाह जी और प्रधानमंत्री जी के कहने पर हम गठबंधन में रहे। 2019 के चुनाव में नीतीश कुमार ने आदतन धोखा देते हुए हमारे प्रत्याशियों को हराने का काम किया। 2020 में इसीलिए हम सरकार से अलग होने का फैसला कर चुके थे। हमारी बातें विजन डॉक्यूमेंट में नहीं आ रही थीं। बिहार के युवाओं, नीतियों की बात थी, लेकिन मुख्यमंत्री जी ने उस बात को स्वीकारा नहीं। हमारा विरोध भाजपा से नहीं था, इसलिए 2020 के विधानसभा चुनाव में हमने 137 उम्मीदवार में से अधिकतर जनता दल यूनाइटेड के खिलाफ उतारे। नीतीश कुमार के दोबारा जाने के बाद हमने बात शुरू की और हम फिर गठबंधन में हैं।