चंद्रयान 3 की कामयाबी के बाद अब आदित्य एल 1 मिशन की तैयारी चल रही है. 2 सितंबर को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से इसे लांच किया जाना है. हर किसी के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि इसे आदित्यान, सूर्ययान नाम क्यों नहीं दिया गया है. आदित्य में एल 1 शब्द का मतलब क्या है. सूरज तक पहुंचने के लिए आदित्य को कितनी दूरी तय करनी है. यहां पर सभी सवालों के जवाब पर क्रमवार नजर डालेंगे.
ये हैं पांच वजह
-आदित्य मिशन के लिए लैग्रेंज प्वाइंट 1, 2, 3, 4 और पांच हैं लेकिन आदित्य के साथ एल1 को जोड़ा गया है. दरअसल लैग्रेंज कक्षा में इस प्वाइंट पर ग्रहण का असर ना के बराबर होता है, जैसा कि हम सब जानते हैं कि सूर्य पर ग्रहण का प्रक्रिया स्वाभाविक है लिहाजा एक ऐसे बिंदु का चयन करना था जहां ग्रहण का असर ना हो. ऐसी सूरत में एल 1 प्वाइंट सबसे मुफीद नजर आया.
-किसी भी ग्रह की कक्षा के आसपास करीब 5 स्थान होते हैं जहां गुरुत्वाकर्षण बल, स्पेस क्रॉफ्ट और सूरज और ग्रह की गतिविधियां जानकारी हासिल करने के लिए बेहतर माना जाता है. 18वी सदी में जोसेफ लुई लैग्रेंज नाम के एस्ट्रोनॉमर ने धरती से 15 लाख किमी की दूरी पर सूर्य की बाहरी कक्षा में पांच बिंदुओं की खोज की थी जिसे लैग्रेंज प्वाइंट्स के नाम से जाना गया.
-पीएसएलवी-सी 57 रॉकेट आदित्य को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचाएगा. निचली कक्षा में पहुंचने के बाद ओवल आकार में लाकर प्रोपल्शन की मदद से एल 1 प्वाइंट की तरफ भेजा जाएगा. पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से बाहर होने के बाद क्रूज फेज शुरू होगा और एल 1 के पास हैलो आर्बिट में प्लेस किया जाएगा. इस पूरी प्रक्रिया में करीब 127 दिन यानी चार महीने का समय लगेगा.
-सूर्य के अध्ययन के बारे में कहा जाता है कि प्रयोगशाला में सटीक जानकारी हासिल नहीं की जा सकती. पृथ्वी पर जीवन के लिए सौर ऊर्जा का महत्व किसी से छिपी नहीं है. सूर्य पर कई तरह की रासायनिक क्रियाएं होती हैं और उसका असर धरती पर पड़ता है. सूर्य असीमित मात्रा में ऊर्जा प्रदान करता है लिहाजा निकट भविष्य में अगर कोई घटना होती है तो उसका पूर्व अध्ययन आगे की स्थितियों के विश्लेषण में अहम जानकारी दे सकेगा.
-आदित्य एल 1 मिशन का बजट करीब 423 करोड़ रुपए है. इसे पीएसएलवी-सी 57 से लांच किया जाना है. इसका मकसद क्रोमोस्फीयर, कोरोना, प्लाज्मा फिजिक्स, सोल फ्लेयर्स का अध्ययन करना है. इसके अलावा कोरोनल लूप और कोरोनल तापमान, घनत्व और वेग के बारे में जानकारी हासिल होगी. इसके साथ ही कोरोना में मैग्नेटिक फील्ड, टोपोलॉजी, संरचना और उसकी उत्पत्ति के बारे में जानकारी हासिल की जाएगी.
धरती से एल 1 प्वाइंट की दूरी 15 लाख किमी
धरती और सूर्य के बीच की दूरी करीब 151 लाख किमी है. आदित्य को 151 लाख किमी की दूरी की जगह सिर्फ 15 लाख किमी दूरी तय करनी है. आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि आदित्य को कुल दूरी की सिर्फ एक फीसद तय करनी है. आदित्य को सूर्य की कक्षा के एल 1 प्वाइंट पर स्थापित करना है यानी कि आदित्य एल 1 कक्षा से सूरज का अध्ययन करेगा. एल को लांग्रेज और कुल पांच प्वाइंट हैं जिन्हें एल 1, एल 2, एल 3, एल 4 और एल 5 के नाम से जाना जाता है. इस मिशन का मकसद सूरज के सभी अनसुलझे रहस्य को समझना है ताकि ऊर्जा स्रोत के बारे में सटीक जानकारी मिल सके.