एम के न्यूज / महेन्द्र शर्मा
नई दिल्ली
किन्नरों को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणियां किए जाने पर उच्च न्यायालय ने सेशन कोर्ट को नसीहत दी है। अदालत ने कहा है कि इस तरह की स्टीरियोटाइप और गैर-जरूरी टिप्पणियां किया जाना गलत है। सेशन कोर्ट ने एक ट्रांसवुमन की बेल अर्जी खारिज करते हुए कुछ टिप्पणियां की थीं, जिस पर उच्च न्यायालय ने आपत्ति जाहिर की है। पंढरपुर की सेशन कोर्ट ने एक ट्रांसवुमन की बेल अर्जी खारिज करते हुए कहा था कि किन्नर लोगों को परेशान करते हैं। जज ने तीन पैरे के फैसले में उसकी बेल को खारिज करते हुए कहा था कि किन्नर दुष्ट होते हैं और कई बार लोगों को परेशान करने के लिए उपद्रव मचाते हैं।
सेशन कोर्ट ने 19 दिसंबर को बेल खारिज करते हुए यह फैसला सुनाया था। इसी के खिलाफ अर्जी पर विचार करते हुए हाई कोर्ट के जज जस्टिस माधव जामदार ने 15 जनवरी को इन टिप्पणियों को खारिज किया है और कहा कि बेल ठुकराते हुए ऐसा कुछ भी कहने की जरूरत नहीं थी। उन्होंने कहा, ‘ट्रांसजेडर लोग भी इस देश के नागरिक हैं और उन्हें भी सभी की तरह सम्मान और गरिमा के साथ जीने का हक है। संविधान उन्हें यह हक प्रदान करता है।’
उन्होंने कहा, ‘इस तरह की स्टीरियोटाइप टिप्पणियां करना और सामान्यीकरण वाले बयान देना गलत है। इसकी कोई जरूरत नहीं थी। ट्रांसजेंडर भी इस देश के नागरिक हैं। भारत के संविधान का आर्टिकल 21 जीवन के अधिकारी और निजी स्वतंत्रता की रक्षा करता है। जीवन के अधिकार में गरिमा के साथ जिंदगी गुजारना शामिल है। ऐसे में सेशन कोर्ट ने पैरा 19 से 21 तक जो कहा था, वह गलत था। इसके अलावा बेल को खारिज करने का यह कोई आधार भी नहीं हो सकता।’
बेल की अर्जी देने वाली ज्योति मंजप्पा प्रसादवी पर आरोप था कि उसने विट्ठल रुक्मिणी मंदिर में एक श्रद्धालु से छेड़छाड़ और बदसलूकी की थी। यही नहीं उस पर आरोप था कि उसने श्रद्धालु से पैसे मांगे और इनकार करने के बाद मारपीट की। फिर जबरदस्ती कुछ रकम लेकर भाग गई। इस मामले में उसे आईपीसी की अलग-अलग धाराओं के तहत जेल में बंद किया गया था। फिर जब ज्योति ने सेशन कोर्ट का रुख किया तो उसकी बेल अर्जी खारिज हो गई। अंत में 15 जनवरी को उसने हाई कोर्ट में अपील दायर की।