सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुष्कर्म जहां पीड़ित के लिए सबसे बड़ी परेशानी, भयावह और अपमान का कारण बनता है, वहीं इसका झूठा आरोप आरोपी के लिए भी उतना ही संकट, अपमान और क्षति का कारण बन सकता है। ऐसे में दुष्कर्म के आरोपी को भी इस तरह के प्रभाव से बचाया जाना चाहिए।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने कहा, जब कोई आरोपी इस आधार पर एफआईआर को रद्द करने के लिए अदालत का रुख करता है कि ऐसी कार्यवाही स्पष्ट रूप से तुच्छ या परेशान करने वाली है, तो ऐसी परिस्थितियों में अदालत का कर्तव्य है कि वह एफआईआर को ध्यान से देखे। आरोपी को भी गलत फंसाने की आशंका से सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए, खासकर जहां बड़ी संख्या में आरोपी शामिल हों।
मामले को किया रद्द
पीठ ने कहा, दुष्कर्म के मामले में शिकायतकर्ता व्यक्तिगत प्रतिशोध आदि के लिए एक गुप्त उद्देश्य के साथ आरोपी के खिलाफ आगे बढ़ने का फैसला करता है, तो वह यह सुनिश्चित करेगा कि एफआईआर/शिकायत सभी आवश्यक दलीलों के साथ बहुत अच्छी तरह से तैयार की गई है। वह यह सुनिश्चित करेगा कि एफआईआर/शिकायत में दिए गए कथन ऐसे हों कि वे कथित अपराध साबित करने के लिए आवश्यक सामग्री बनें। इसलिए अदालत का सिर्फ एफआईआर/शिकायत में दिए गए कथनों पर गौर करना पर्याप्त नहीं है।
शीर्ष अदालत ने इस टिप्प्णी के साथ उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के मिर्जापुर थाने में आरोपी के खिलाफ दर्ज दुष्कर्म व आपराधिक धमकी के मामले को रद्द करने के इलाहाबाद हाईकोट के आदेश को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की।