भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) देश के पहले सूर्य मिशन के तहत ‘आदित्य एल1’ यान को आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से शनिवार को लॉन्च करने के लिए तैयार है. अब से थोड़ी देर बाद11 बजकर 50 मिनट पर इसरो के भरोसेमंद पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (पीएसएलवी) के जरिये श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र के दूसरे लॉन्च पैड से प्रक्षेपित किया जाएगा.
‘आदित्य एल1’ को सूर्य परिमंडल के दूरस्थ अवलोकन और पृथ्वी से लगभग 15 लाख किलोमीटर दूर ‘एल1’ (सूर्य-पृथ्वी लैग्रेंजियन बिंदु) पर सौर हवा का वास्तविक अवलोकन करने के लिए डिजाइन किया गया है.
1995 में लॉ़न्च हुआ था ऐसा ही सूर्य मिशन
1995 में, NASA और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) ने सौर और हेलिओस्फेरिक वेधशाला (SOHO) मिशन लॉन्च किया. यह मिशन लगभग वैसा ही है जैसा अब इसरो का आदित्य-L1 है. SOHO अब तक का सबसे लंबे समय तक जीवित रहने वाला सूर्य-दर्शन उपग्रह है, अंतरिक्ष यान ने दो 11-वर्षीय सौर चक्रों का निरीक्षण किया है, इस दौरान इसने हजारों धूमकेतुओं की खोज की.
क्या कहते हैं भारतीय वैज्ञानिक
न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक कई भारतीय सौर भौतिकविदों का मानना है कि आदित्य-एल1 मिशन और इसके पेलोड NASA-ESA के SOHO की तुलना में कहीं बेहतर हैं.
प्रोफेसर रमेश ने समझाया, ‘ग्रहण के दौरान, चंद्रमा बिल्कुल प्रकाशमंडल को ढक लेता है और हम सौर कोरोना को ठीक उसी स्थान से देख पाते हैं जहां से यह शुरू होता है. जब हम इसे कृत्रिम रूप से करने का प्रयास करते हैं, तो हमें एक गुप्त डिस्क लगानी पड़ती है. गुप्त डिस्क का आकार बहुत महत्वपूर्ण है, चाहे वह फोटोस्फीयर के समान आकार का हो या बड़ा हो. गुप्त डिस्क का आकार फोटोस्फीयर के समान नहीं होने के कारण कुछ समस्याएं रही हैं. इसलिए पहले नासा और ईएसए मिशन कोरोना का ठीक वहीं से निरीक्षण नहीं कर पाए थे, जहां से इसकी शुरुआत होती है.”
गौरतलब है कि प्रोफेसर रमेश की टीम ने आदित्य-एल1 के प्राथमिक पेलोड, विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) को डिजाइन और विकसित किया है.
SOHO की तुलना में बेहतर उपकरण
दोनों सौर मिशनों की तुलना करते हुए, वीईएलसी पेलोड के मुख्य अन्वेषक ने बताया कि बोर्ड पर लगे उपकरण SOHO की तुलना में कहीं बेहतर हैं. प्रोफेसर रमेश ने कहा, ‘वे (नासा-ईएसए) हर 15 मिनट में एक छवि क्लिक करने में सक्षम थे. हम हर मिनट सोलर कोरोना की फोटो क्लिक कर सकेंगे. किसी भी तेज बदलाव को हम बहुत प्रभावी ढंग से पकड़ने में सक्षम होंगे. हम पोलीमीटर नामक एक उपकरण भी उड़ा रहे हैं, जो चुंबकीय क्षेत्र में बदलाव की निगरानी करेगा. यह एक पूर्व चेतावनी दे सकता है कि एक हिंसक सौर विस्फोट होगा.’