
गाजीपुर ।
अतिप्राचीन रामलीला कमेटी हरिशंकरी के तत्वावधान में लीला के सातवे दिन 27 सितम्बर, मंगलवार को सायं 7ः00 बजे स्थानीय विशेश्वरगंज स्थित पहाड़खां पोखरा पर वन्दवाणी विनायकौ रामलीला मण्डल द्वारा श्रीराम केवट सम्वाद व घरनैल द्वारा सुरसरी पार जाने का लीला मंचन किया गया ।
श्रीराम चरित मानस ग्रन्थ के आधार पर अयोध्या काण्ड से लिया गया लीला दर्शाया गया कि माता कैकेयी के वरदान के अनुसार श्रीराम वनवास काल के दौरान अयोध्या राज्य सीमा के पार श्रीराम के सखा निषादराज का राज्य शुरू होता है ।
श्रीराम का रथ सीमा पार करके श्रृगवेरपुर राज्य में पहुंचता है तो निषादराज को दूतों द्वारा पता चलता है कि दो वीर पुरूष रथ पर सवार हो करके श्रृगवेरपुर की ओर आ रहे हैं तो निषादराज ने दूतों से कहा कि जाओ पता लगाओ कि वे दोनो वीर कौन हैं ।
निषादराज के आदेशानुसार दूतों ने जा करके पता किया कि वे दोनों वीर अयोध्या नरेश चक्रवर्ती राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम , लक्ष्मण हैं । इतना सुनकर दूतों ने निषादराज को उनके बारे में सारा पता बताते हैं , जब निषादराज ने सुना कि अयोध्या के श्रीराम जो हमारे पुराने सखा हैं वे अपने भाई के साथ श्रृंगवेरपुर के सीमा पर आ पहुंचे हैं तो वे खुश हो करके अपने सैनिकों के साथ वहां पहुंचते हैं और पुराने बात को याद करके उन्होंने श्रीराम को अपने गले लगा लिया और सारी बाते सुनकर श्रीराम से निषादराज कहते हैं कि मित्र आप हमारे राज्य में चलिए वहां पर 14 वर्ष बिताइयेगा इतना सुनते ही श्रीराम ने कहा कि जिस राज्य को हमने त्यागकर वन प्रदेश के लिए प्रस्थान किया है, तो पुनः आपकी राज्य में जाने पर मैं प्रतिबन्धित हूँ , क्योंकि आपके साथ जाने पर मेरा संकल्प अधूरा रह जायेगा।
निषादराज ने अपने मित्र के बात को मानकर सिसुपा वृक्ष के नीचे श्रीराम के ठहरने का व खाने-पीने का व्यवस्था करा दिया । श्रीराम , लक्ष्मण रात भर सिसुपा वृक्ष के नीचे विश्राम करने के बाद दूसरे दिन सुबह उठकर अपने नित्य कर्म से निवृत्त हो करके गंगा के तट पर खड़ा हो करके केवट को बुलाते हैं । केवट ने कहा कि महाराज आप अपना परिचय बताईये श्रीराम ने परिचय बताया केवट ने जब सुना कि श्रीराम सामने खड़े हैं, उसने कहा कि महाराज मैं पहले आपका पैर धो लूंगा तब मैं नाव पर बैठाउंगा क्योंकि आपके पैर में जादू है। इतना सुनते ही श्रीराम ने केवट से कहा कि जाओ पानी भरके लाओ और जल्दी पैर धूल करके मुझे गंगा पार उतारों। इतना सुनते ही केवट घर से कठौथा लाकर गंगाजल ले करके प्रभु श्रीराम का पैर धूल करके चरणामृत पान किया । उसके बाद उसने श्रीराम को नाव में बैठाकर गंगा पार कर दिया। पार होने के बाद प्रभु श्रीराम ने उत्तरायी देने लगे तो उसने कहा कि अब कछुनाथ न चाहिअ मोरे दिन दयाल अनुग्रह तोरे इतना कहने के बाद वह श्रीराम के चरणो में प्रणाम करके लौटना चाहता है तो प्रभु ने उसे अविरल भक्ति देकर उसे विदा कर देते हैं।
इस अवसर पर मंत्री ओमप्रकाश तिवारी (बच्चा), उप मंत्री लव कुमार त्रिवेदी, कोषाध्यक्ष रोहित कुमार अग्रवाल, प्रबंधक वीरेश राम वर्मा, उप प्रबंधक मयंक तिवारी, अजय कुमार पाठक, मनोज तिवारी, कृष्ण बिहारी त्रिवेदी आदि लोग उपस्थित रहे ।