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नमामी गंगे– मऊ के मड़ैया घाट से बनारस के अस्सी घाट 120 किमी. पैदल चल निकले पर्यावरण के सात दीवाने ।

 

ग़ाज़ीपुर ।

मऊ जिले के नगर क्षेत्र के मध्य से निकलने वाली तमसा नदी जो बिहार के बक्सर में गंगा नदी में जाकर मिलती है। इसके जल को स्वच्छ और अविरल बनाने साथ ही इस के अगल-बगल पेड़ों और हरियाली लगाने के लिए पांच शिक्षको की एक टोली ने शासन और प्रशासन की ध्यान को खींचने के लिए मऊ जिले से बनारस तक पैदल पदयात्रा करने की शुरुआत कर दी है।

शिक्षकों के टीम को लीड करने वाले शैलेंद्र प्रताप ने बताया कि वह पिछले 2 वर्षों से प्रत्येक दिन एक पेड़ लगा कर साथ ही लोगों को उसकी रक्षा करने के लिए जागरूक करते हैं। वृक्षों से समाज को मिलने वाले फायदे के बारे में जागरूक करते हुए पर्यावरण में पेड़ और उसकी स्वच्छता का महत्व बताते हैं।

शैलेंद्र ने बताया कि वह लोगों को पेड़ों के प्रति जागरूक करने के लिए जब वह प्रत्येक दिन विद्यालय के लिए निकलते हैं तो अपनी बाइक पर झोले में पेड़ लेकर जाते हैं और सही जगह और व्यक्तियों को देखकर उन्हें पेड़ निशुल्क देकर पेड़ लगाने के लिए और उसकी देखभाल करने की सलाह देते हैं।

उन्होंने बताया कि नमामि गंगे योजना के बारे में उन्होंने जब गहनता से अध्ययन किया तो पता चला कि गंगा स्वच्छ अभियान नहीं रह सकती हैं जब तक उस में मिलने वाली नदियां भी स्वच्छ ना हो जिसमें की मऊ नगर से गुजरने वाली तमसा नदी में सीवर और नाले सीधे मिलाए जाते हैं जिसके कारण यह दूषित जल गंगा में जाकर मिल जाता है।

जिससे कि गंगा को पीछे कितना भी साफ कर लिया जाए लेकिन आगे आकर वह फिर दूषित हो जा रही है।

इसी मंतव्य से उन्होंने सरकारों का ध्यान दिलाने के लिए अपने सात शिक्षकों और तीन सहयोगीयों की टोली बना कर के साथ मऊ के मड़ैया घाट से बनारस के अस्सी घाट तक 120 किलोमीटर पैदल यात्रा करते हुए रास्ते में लोगों को पेड़ और पर्यावरण को लेकर जागरुक करनेके साथ सरकार का ध्यान इस ओर आकृष्ट करेंगे।

शैलेंद्र ने बताया कि 120 किलोमीटर की पैदल यात्रा की शुरुआत करने से पहले हमारे सातों साथी पिछले 1 माह से सभी छुट्टी के दिनों में मऊ के तमसा नदी के तट से गाजीपुर मरदह बाजार तक पैदल जाते और वापस आते थे।

हमने जो आंकड़ा निकाला उस हिसाब से 1 दिन में कुल 35 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी है। इस पदयात्रा में हमारे जिलों के अन्य शिक्षक साथी और आमजन पैदल साथ चल कर हमें अपनी जनपद की सीमा तक छोड़ेंगे।

इस तरह से यह 120 किलोमीटर की यात्रा 3 जून की प्रातः बनारस के अस्सी घाट पर संपन्न हो जाएगी।

रात्रि प्रवास के बारे में शैलेंद्र ने बताया कि हाईवे के किनारे पढ़ने वाले राजकीय प्राथमिक विद्यालय में ही रुकना है। अपने हाथ से ही भोजन बनाना है और खाना है। किसी साथी के घर या कहीं होटल आदि में नहीं रुकना है।

वही रात्रि प्रवास में गांव के लोगों को पर्यावरण और नदी की स्वच्छता उससे होने वाले फायदे से अवगत कराएंगे।

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